एमपी के उपचुनाव ने साबित कर दिया कि शिवराज के बूते बनी थी सरकार,जीतू पटवारी का बढ़ा कद

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भोपाल। मध्यप्रदेश की सियासी फिजा एक साल के अंदर ही करवट बदलने लगी है। यहां बुधनी और श्योपुर जिले की विजयपुर विधानसभा सीट पर उप चुनाव हुए जो नतीजा 23 नवंबर को सामने आया वह बीजेपी की सेहत के लिए ठीक नहीं है। हालांकि समीक्षा तो होगी लेकिन होने वाला कुछ नहीं है इसकी वजह भी साफ है, प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा की विदाई होने वाली है तो फिर जबाव सवाल का कोई औचित्य नहीं रह जाता। इन दो सीटों के नतीजों से सवाल तो खड़े हुए जिनको आपको जानने की दरकार है। अगर दोनों सीट जीत जाते तो वीडी शर्मा संगठन की दुहाई देकर वाहवाही लूटने का कोई मौका हाथ से निकलने नहीं देते लेकिन उन्हें यह बयान देने पर मजबूर होना पड़ा कि चुनाव में हार और जीत होती रहती है। यह बात तो आज के वक्त में 10 साल का बच्चा भी जानता है कि चुनाव में हार और जीत ही होती है। अब हम सियासी जानकारों की मानें तो यह भी साबित हो गया कि 2023 के चुनाव में जो भाजपा को प्रचंड बहुमत मिला वो शिवराज सिंह चौहान की बदौलत हासिल हुआ। अगर चौहान लाडली बहना योजना लांच न करते तो वीडी शर्मा के दम पर भाजपा सत्ता में नहीं आ सकती थी। यही जानकार कहते हैं कि 2018 के चुनाव में भी तो राकेश सिंह  प्रदेश के अध्यक्ष थे फिर सरकार कांग्रेस की क्यों बन गई? सवाल बेशक लाजिमी है, अब आपको हम बताते हैं कि शिवराज सिंह चौहान केंद्र सरकार में कृषि मंत्री हैं और मोहन यादव सूबे के मुखिया हैं। शिवराज के केंद्र में जाने के बाद ये दोनों चुनाव सीएम और वीडी शर्मा को साबित करने के लिए एक मौके के तौर पर देखा जा सकता है। बुधनी सीट शिवराज के इस्तीफे के बाद खाली हुई जबकि विजयपुर सीट से कांग्रेस के विधायक रामनिवास रावत काबिज थे लेकिन सत्ता सुख की चाहत में उन्हें माया मिली न राम। लोकसभा चुनाव से ऐन पहले बीजेपी ज्वाइन किए और 8 जुलाई को मंत्री पद की शपथ भी ले ली और वन मंत्रालय भी उनके खाते में आ गया। उन्होंने विधायक के पद से इस्तीफा दे दिया। अब हम बात करते हैं चुनाव नतीजे की जिसने कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी के कद को तो बढ़ा दिया लेकिन विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर समेत तमाम बीजेपी के दिग्गजों को अंदर तक झकझोर भी दिया। तोमर का जिक्र हम इसलिए कर रहे कि उन्होंने ने ही रामनिवास रावत को कांग्रेस छोड़वा कर बीजेपी ज्वाइन कराई थी और पूरे चुनाव में कमान भी संभाल कर रखे थे मगर बावजूद इसके रावत की नैया पार नहीं लगवा पाए। यहां यह बताना भी जरूरी है कि कांग्रेस प्रत्याशी मुकेश मल्होत्रा जो अब विधायक बन चुके हैं उनको भी तोमर बीजेपी में शामिल कराए थे लेकिन 2018 और 2023 के चुनाव में जब टिकट नहीं दिला पाए तो मुकेश ने निर्दलीय चुनाव लड़ा। 2023की हार के बाद दिग्विजय सिंह ने मुकेश को कांग्रेस में शामिल कराया और अब वो चुनाव भी जीत गए। सहरिया समाज के बड़े नेता के रूप में मुकेश की पहचान है और विजयपुर में 60 हजार आदिवासी वोट हैं इसका फायदा मुकेश को मिला। 2023 में रावत 69 हजार 646 वोट पाकर 18 हजार वोट से चुनाव जीते थे जबकि भाजपा के बाबूलाल को 51हजार 587 मत मिले थे तीसरे पायदान पर मुकेश मल्होत्रा थे उन्हें 44हजार 128 वोट हासिल हुए थे , जबकि बसपा प्रत्याशी धारा सिंह कुशवाह के खाते में 34 हजार 346 वोट गए थे। इस बार बीजेपी को बीएसपी ने तगड़ा झटका दे दिया उसने अपना कैंडिडेट चुनाव मैदान में नहीं उतारा और सीधे मुकाबला रावत और मुकेश के बीच हुआ। सत्ता के मद में चूर बीजेपी कार्यकर्ताओं ने चुनाव के वक्त आदिवासियों पर जमकर कहर बरपाया उनके घरों को आग के हवाले किया गया, उनके आधार कार्ड छीन लिए गए कई लोगों के सिर फोड़ दिए गए जिसका सीधा असर मतदान पर हुआ और आदिवासी वोटर्स एकजुट होकर कांग्रेस के साथ चले गए। सियासी एक्सपर्ट बताते हैं कि विजयपुर से रामनिवास रावत आदिवासियों के बूते विधायक बनते थे। आदिवासी रावत को नहीं कांग्रेस को वोट करते थे लेकिन रावत उसे अपनी बपौती समझ लिए थे और आदिवासी समाज ने उनको बाहर का रास्ता दिखा दिया। मंत्री पद से रावत ने हारने के बाद इस्तीफा दे दिया है, चले थे मंत्री बनने अब विधायक भी नहीं रहे, मंत्री की शर्त पर आए थे वो ख्वाब पूरा हो गया। यह बात दीगर है कि सरकार उन्हें किसी मंडल या आयोग का अध्यक्ष बना कर ढोती रहे। इस चुनाव में मुकेश मल्होत्रा को 1लाख 469 मत मिले और रावत को 93 हजार 105 वोट हासिल हुए ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि बसपा मैदान से बाहर थी। अब आते हैं बुधनी सीट पर जहां से बीजेपी से शिवराज सिंह चौहान के चहेते रमाकांत भार्गव चुनाव जीत गए लेकिन जीत का मार्जिन चौंकाने वाला है। कांग्रेस के राजकुमार पटेल अंतिम राउंड तक रमाकांत भार्गव का बीपी घटाते, बढ़ाते रहे। शिवराज सिंह चौहान 2023 में यहां से 1लाख 4 हजार 974 वोट से जीते थे इस बार जीत का अंतर 14 हजार में सिमट गया। आंकड़ों पर नजर दौड़ाइए तो आप देखेंगे जितने वोट से चौहान ने चुनावी किला फतह किया था उतने वोट भार्गव को मिले उन्हें 1लाख 7 हजार 478 मत मिले जबकि पटेल को 93हजार 577 मत हासिल हुए। यानि बीजेपी को सीधे 91 हजार वोट का नुकसान हुआ। जानकार बताते हैं कि अगर टिकट शिवराज सिंह के बेटे कार्तिकेय को मिलती तो जीत का अंतर ज्यादा होता। कार्तिकेय के लिए सभी मंडल अध्यक्षों ने भी लिखित में टिकट की मांग की थी लेकिन चौहान ने अपने चहेते रमाकांत को टिकट दिलाया। यहां सीएम मोहन यादव चुनाव की कमान हाथ में लिए थे इसके अलावा शिवराज ने भी दर्जन भर सभाएं की वाबजूद इसके किसी तरह बीजेपी अपनी नाक बचाने में कामयाब रही। इन्हीं जानकारों की मानें तो किरार समाज भी पूरी तरह भार्गव के साथ नहीं था। राजकुमार पटेल भी इसी समाज से आते हैं लिहाजा वह दो फांक में बट गया, इसी तरह राजेंद्र सिंह राजपूत की टिकट कटने से राजपूत समाज ने भी बीजेपी से दूरी बना ली। हालांकि राजेंद्र सिंह को पार्टी ने मना तो लिया और वे पार्टी की बात मान भी गए लेकिन उनके समर्थक खुलकर भाजपा का साथ नहीं दे पाए। अब सवाल यह है कि क्या भाजपा शर्तों पर किसी कांग्रेसी नेता को ज्वाइन कराएगी और अपने पुराने नेताओं को लूप लाइन में रखने की हिम्मत जुटा पाएगी? इन्हीं कांग्रेसी नेताओं की वजह से पार्टी के सीनियर नेता मंत्री नहीं बन पाए और वे नाराज चल रहे हैं। जानकार कहते हैं अगर पार्टी इसी ढर्रे पर चलती रही तो क्या 2028 में सरकार बनाने का सपना पूरा कर पाएगी? अब देखना यह है कि नए अध्यक्ष की कमान किसे मिलती है और वह किस गाइड लाइन पर पार्टी को उठाने का काम करता है?

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