मऊगंज जिले में मीडिया को कुचल रहा प्रशासन,अफसरों को पसंद है भाटगिरी

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भोपालसंतोष पांडेय। काश मऊगंज जिला नहीं बनता तो बेहतर होता, न यहां कोई कलेक्टर आता और न ही एसपी। पहले भले ही जनता को रीवा जाना पड़ता था वह बस में धक्के खाकर, दिन भर भूखे रहकर अपना काम कराती थी लेकिन उसे मानसिक सुकून था जो अब छिन चुका है। जिस मकसद से विधायक प्रदीप पटेल ने मऊगंज को जिला बनवाने में एड़ी चोटी का जोर लगा दिया यहां तैनात अफसरों ने उस पर पानी फेर दिया। एक कहावत है  मजा मारे गाजी मियां और धक्का खाएं मुजाफर अफसर मजे में हैं और जनता चीख रही हैं जिसकी आवाज सूबे के मुखिया मोहन यादव के कानों तक नहीं पहुंच पा रही है। जिला बने महज 14 माह हुए और यहां के अफसर चौथे स्तंभ मीडिया को ही कुचलने का कुचक्र रचने लगे। इन अधिकारियों को भाटगिरी पसंद है ये भूल रहे हैं अब कोई राजतंत्र नहीं है प्रजातंत्र है और आप मीडिया को पूरी ताकत झोंकने के बाद भी नहीं कुचल सकते।

शिखा कांड के दोषियों पर क्यों नहीं हुई कार्यवाई?

दो माह बीतने को हैं पहाड़ी निवासी नरेंद्र मिश्रा की शिखा आरक्षक विवेकानंद और दो मुस्लिम युवकों ने उखाड़ ली वह गुहार लगा रहा। अगस्त क्रांति मंच के संयोजक कुंजबिहारी तिवारी ने आमरण अनशन किया और आश्वासन दिया गया एक पखवाड़े में जांच पूरी हो जाएगी, समय सीमा गुजर चुकी लेकिन जांच डस्टबिन में हैं आखिर क्यों? कुंजबिहारी तिवारी ने 19 सूत्रीय मांगों को लेकर आमरण अनशन किया था सिर्फ एक मांग पर कार्रवाई हुई बाकी पर क्यों नहीं? क्या इसके लिए कलेक्टर और एसपी के पास वक्त नहीं है। अगर वक्त नहीं था तो किस दम पर अनशन तोड़वाया गया? प्रशासन मीडिया को दबोचने की कोशिश कर रहा। पुलिस का एक भ्रष्ट आरक्षक पुष्पराज सिंह बागरी आवेदन देता है उसने पत्रकार मिथिलेश त्रिपाठी, हिन्दू संगठन के कार्यकर्ता संतोष तिवारी और अपने ही महकमे के सूबेदार अमित विश्वकर्मा पर आरोप लगाया ये जुआ खेल रहे थे, साथ में 20 और लोग थे उसने कोई सुबूत नहीं दिया इस आवेदन को एसपी ने इतनी गंभीरता से लिया कि फौरन एएसपी अनुराग पांडेय को जांच का जिम्मा दे दिया। एक कहावत है माछी चाहे खता, मानो एएसपी को इसी का इंतजार था उन्होंने भी तत्काल तीनों को नोटिस जारी कर जबाव के लिए तारीख मुकर्रर कर दी और चेतावनी भी दी अगर जवाब नहीं दिए तो एकतरफा कार्यवाही की जाएगी। कितना डराओगे आप, आम जनता और मीडिया को। मीडिया का काम ही है अव्यवस्था के खिलाफ खबर लिखना। अगर आप अपने आरक्षक को सही काम करने की नसीहत देते तो शायद ज्यादा बेहतर होता लेकिन उसे बचाने के लिए आपने नोटिस का खेल खेला।

क्यों नहीं पकड़ रहे? अपने ही हमलावरों को

एएसपी ने नोटिस में लिखा प्राथमिकता, सूक्ष्मता और बारीकी से जांच करेंगे। जिसका कोई प्रमाण नहीं उसकी जांच आप इतने संजीदा होकर करेंगे वो भी जुआ खेलने के आरोप में पूरी ताकत झोंकेंगे। अगर अवैध शरबत, गांजा और कोरेक्स के माफियाओं पर इतनी ताकत झोंकने की बात करते तो मऊगंज की जनता आपके सामने विधायक प्रदीप पटेल की तरह नतमस्तक हो जाती लेकिन आप तो अपने पुलिस के हमलावरों को भी दो माह बाद नहीं पकड़ सके।

जग्गी बनने की कोशिश मत करिए

अब आपको एक सच्ची घटना से रूबरू कराते हैं। वर्ष 2008 में सतना जिले के एसपी कमल सिंह राठौर हुआ करते थे और सिटी कोतवाल बीएस जग्गी थे। जग्गी अब इस दुनिया में नहीं हैं जबकि राठौर के खिलाफ गौ तस्करी पर लगाम न लगाने के बजरंग दल ने आरोप लगाए तो एसपी को पीएचक्यू भेज दिया गया और वे 2016में आईजी बनकर रिटायर तो हुए लेकिन सतना एसपी के बाद उन्हें न तो कोई जिला मिला और न ही कोई रेंज। बटालियन से ही घर वापसी हो गई। लेकिन हम आपको जो बताना चाहते हैं वह दूसरा मुद्दा है। सतना के सोहावल में एक हरिजन की मौत होती है उससे पहले उसे जबलपुर रेफर किया जाता है वहीं उसने दम तोड़ दिया, परिजन डेड बॉडी लेकर सतना आते है मामला विवादित था लिहाजा परिजन रेलवे स्टेशन से शव सोहावल ले गए और रोड पर रखकर जाम लगा दिया। तब तक शाम हो गई थी स्वाभाविक है मीडिया के लोग भी पहुंचे लेकिन टी आई जग्गी ने लाठी चार्ज करवा दिया और सतना के दो दर्जन मीडियाकर्मियों के खिलाफ मुकदमा कायम कर लिया। मैं उस समय विंध्य भारत अखबार का सिटी चीफ था। मैं घटनास्थल पर नहीं था क्योंकि वह समय प्रेस में काम करने का होता है लेकिन हमारा कैमरामैन वहां मौजूद था वाबजूद इसके जग्गी ने पत्रकारों की लिस्ट निकालकर मुकदमे कायम किए जिसमें मेरा भी नाम था। हरिजन की मौत का मामला था लिहाजा सबके ऊपर हरिजन एक्ट भी लगा। जब सतना की मीडिया को जग्गी की हरकत पता चली तो मीडिया ने एकजुट होकर पुलिस और जिला प्रशासन का कवरेज रोक दिया। इत्तफाक से एक पखवाड़े बाद सीएम शिवराज सिंह चौहान को सतना विजित पर आना था। जब यह जानकारी सीएम को लगी तो वे समय निकालकर सतना आए और एयरपोर्ट पर ही मीडियाकर्मियों को बुलाकर समझौता किया। सभी के मामले वापस हुए। इस घटना का यहां जिक्र करना लाजिमी था। मऊगंज प्रशासन भी यहां मीडिया को पैर की जूती बनाने की कोशिश कर रहा है और फर्जी मामलों में फंसाकर दहशत फैलाने की नाकाम कोशिश कर रहा है। समझदार को इशारा काफी होता हैं।

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