भोपाल. (संतोष पांडेय )मध्यप्रदेश का मऊगंज जिला बारूद के ढेर पर है एक चिंगारी कितनी तबाही कर सकती है यह गड़रा गांव में सभी देख चुके हैं. यहां के प्रथम कलेक्टर अजय श्रीवास्तव और वीरेंद्र जैन के बाद आईं एसपी रसना ठाकुर ने जिले को बर्बाद करने की नीव रखी लगता है उस नीव पर जो इमारत बुलंद होने वाली है उसकी कीमत मऊगंज जिले के एक- एक बच्चे तक को चुकानी पड़ेगी. अजय श्रीवास्तव और रसना ठाकुर के जाने के बाद ज़ब नए कलेक्टर और एसपी ने कमान अपने हाथ में ली तो ऐसा लगा कि अब शायद जिले का नए सिरे से कायाकल्प होगा. नए अधिकारी पिछले अफसरों के पापों को धोकर नए सिरे से मऊगंज जिले के विकास और लॉ एंड आर्डर की इबारत लिखेंगे लेकिन गड़रा में एक साकेत और उसकी बेटा, बेटी की लाश घर से बरामद होने के बाद इस गांव में जिस तरह धारा 163 की होली जलाई गई यह देखकर अब इन अफसरों के ऊपर से भी जनता का विश्वास नजर फेर रहा है. सनी द्विवेदी और रामचरण गौतम की निर्मम हत्या के बाद गड़रा को पुलिस छावनी बनाने में वक़्त नहीं लगा सरकार के आला अफसरों ने सोच लिया पुलिस की तैनाती तमाम समस्या का समाधान है. वरिष्ठ पुलिस अफसर नाम न लिखने की शर्त पर कहते हैं कि नियमन संदेहयों और आरोपियों के घरों में बाहर से ताला बंद या फिर अंदर से बंद दरवाजों की वीडियोग्राफी कराई जानी चाहिए थी लेकिन मौजूदा आईजी और एसपी ने ऐसा कुछ भी नहीं किया बकायदे हर घर की वीडियोग्राफ़ी और सर्चिंग होती तो औसेरी साकेत और उसके बच्चे बच सकते थे.प्रशासन इस गंभीर चूक से बच नहीं सकता इसकी जिम्मेदारी भी तय होनी चाहिए अगर एसडीओपी अंकिता सुल्या को आईजी ऑफिस अटैच किया जा सकता है पूर्व विधायक के शोर मचाने पर तो तीन लाश बरामद होने की जिम्मेदारी भी तय करनी होगी.धारा 163 के आदेश के बावजूद जिस तरह पूर्व विधायक सुखेंद्र सिंह सेंगर ने भड़काऊ बयान दिए, पुलिस के आरक्षक से लेकर एसपी से बहसबाजी की उससे साफ जाहिर है कि प्रशासन मुर्गा बना नजर आया. प्रशासन का अगर यही रवैया आगे भी रहा तो यहाँ वही इतिहास बार – बार दोहराया जाएगा जो अजय श्रीवास्तव और रसना ठाकुर की रखी नीव पर आधारित है. आप लोगों ने मृतक औसेरी साकेत के परिजनों के बयान भी सुने ये निपट अगूठा टेक जिस तरह पुलिस पर हत्या का आरोप मढ़ रहे थे क्या यह उन्हीं की जुबान से निकल रहे शब्द थे? यह भी जांच का विषय है क्या यह किसी से कहलवाया गया प्रायोजित बयान नहीं हो सकता? सवाल तो यह भी है ज़ब सनी को बंधक बनाया गया तब गड़रा गांव और आसपास के पडोसी गांव के लोगों तक को भनक नहीं लगी यहां तक कि पुलिस को भी नहीं पता था लेकिन सुखेद्र सिंह को सबसे पहले खबर लग गयी तब अगर वो हरकत में आकर गड़रा आ जाते तो शायद दोहरा हत्याकांड न होता. साकेत परिवार की घर में लाश होने की खबर भी उन्हीं को पहले क्यों मिली? यह भी सवाल है. इस बार बिना देर किये वो गड़रा आ गए और दो दिन तक डेरा डाले रहे. क्या लाशों पर सियासत करके कोई नेता जनता के दिल में राज करने का हसीन सपना देख सकता है? सुखेद्र सिंह को भले ही यह लगता होगा कि गड़रा में उन्होंने जो कुछ किया वो विधायक बन जायेंगे लेकिन ब्राह्मण समाज की नजर में गिर चुके हैं अगर सनी के बंधक बनाये जाने के बाद वो सक्रिय हो गए होते तो शायद आज सियासी हालात कुछ और होते. मऊगंज जिले में अवैध शराब की बिक्री, कोरेक्स का कारोबार करने वाले और गौ तस्करों के साथ हमेशा उनका नाम सामने आता है. जिले में इस्लामिक झंडे घरों में लहराये जा रहे सुखेद्र सिंह ने कभी विरोध नहीं किया. गड़रा कांड का मास्टर माइंड रफीक उनका ही शागिर्द बताया जाता है. सुखेंद्र सिंह सेंगर दूसरों पर तो बड़ी सहजता से आरोप लगाते हैं लेकिन खुद क्या कर रहे इसका जवाब जनता उन्हें दो चुनावों में लगातार धूल चटाकर दे चुकी यह उनकी समझ में नहीं आ रहा. जिले के सामाजिक ढांचे को जो भी तोड़ने की कोशिश करेगा जनता बक्शेगी नहीं. मऊगंज की जनता को मासूम समझने की नादानी बहुत भारी पड़ेगी. मऊगंज को अगर बचाना है तो यहां की जनता और प्रशासन को हर वक़्त अलर्ट रहना होगा वरना धारा 163 लगाने से निजात नहीं मिलेगी. यहां की जनता सुकून चाहती है वह लाशों के ढेर नहीं देखना चाहती.
